मृणाल सेनः बम्बइया सिनेमा को चुनौती देने वाला फ़िल्मकार
एक सख़्त दिल और रूखे व्यक्तित्व का बड़ा रेलवे अफ़सर भुवन शोम बत्तखों का शिकार करने के मक़सद से गुजरात के देहाती-रेगिस्तानी इलाक़े में जाता है जहां एक निश्छल, कोमल, प्रकृति के बीच रहने वाली युवती का व्यवहार और उसकी संवेदना उसे फिर से संवेदनशील मनुष्य बना देती है. आदिवासी युवती गौरी के भीतर शोम साहब एक 'मरती हुई दुनिया में धड़कती हुई नस को महसूस करते हैं और अचानक हर चीज़ आलोकित हो उठती है, और वे ए क नयी प्रसन्नता को पा जाते हैं.' मनुष्य के रूपान्तरण की यह फ़िल्म थी 'भुवन शोम' और फ़िल्मकार थे मृणाल सेन, जो तब तक बांग्ला में 'नील आकाशेर नीचे' और 'बाइशे श्रावण' जैसी फ़िल्में बना चुके थे. 'भुवन शोम' उनकी पहली हिंदी फ़िल्म थी और उसे वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशन और सवश्रेष्ठ अभिनय (उत्पल दत्त) का पुरस्कार प्राप्त हुआ. समानांतर सिनेमा का आगाज़ 1970 के दशक में हिंदी में एक ऐसे कलात्मक सिनेमा का आगाज़ हुआ था, जिसे बम्बइया व्यावसायिक सिनेमा के बरक्स 'समानांतर सिनेमा' कहा गया और जिसने अगले करीब डेढ़ दशक तक मुख्यधारा की...