लॉन्च हो गया भारत का सबसे भारी सैटेलाइट
भारत के सबसे वज़नी सैटेलाइट जीसैट-11 को यूरोपीय स्पेस एजेंसी के प्रक्षेपण केंद्र फ़्रेंच गयाना से बुधवार सुबह अंतरिक्ष रवाना कर दिया गया.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के मुताबिक़ जीसैट-11 का वज़न 5,854 किलोग्राम है और ये उसका बनाया अब तक का सबसे भारी सैटेलाइट है.
ये जियोस्टेशनरी सैटेलाइट पृथ्वी की सतह से 36 हज़ार किलोमीटर ऊपर ऑरबिट में रहेगा. सैटेलाइट इतना बड़ा है कि इसका हर सोलर पैनल चार मीटर से ज़्यादा लंबा है, जो एक सेडान कार के बराबर है.
जीसैट-11 में केयू-बैंड और केए-बैंड फ़्रीक्वेंसी में 40 ट्रांसपोंडर होंगे, जो 14 गीगाबाइट/सेकेंड तक की डेटा ट्रांसफ़र स्पीड के साथ हाई बैंडविथ कनेक्टिविटी दे सकते हैं.
लेकिन भारी सैटेलाइट का मतलब क्या है? उन्होंने कहा, ''भारी सैटेलाइट का मतलब ये नहीं है कि वो कम काम करेगा. कम्युनिकेशन सैटेलाइट के मामले में भारी होने का मतलब है कि वो बहुत ताक़तवर है और लंबे समय तक काम करने की क्षमता रखता है.''
'मानव अंतरिक्ष उड़ान' की कमान इस महिला के हाथ
इसरो के वो वैज्ञानिक जिन पर लगा जासूसी का झूठा आरोप
बागला के मुताबिक़ अब तक बने सभी सैटेलाइट में ये सबसे ज़्यादा बैंडविथ साथ ले जाना वाला उपग्रह भी होगा.
और इससे पूरे भारत में इंटरनेट की सुविधा मिल सकेगी. ये भी ख़ास बात है कि इसे पहले दक्षिण अमरीका भेज दिया गया था लेकिन टेस्टिंग के लिए दोबारा बुलाया गया.
पहले जीसैट-11 को इसी साल मार्च-अप्रैल में भेजा जाना था लेकिन जीसैट-6ए मिशन के नाकाम होने के बाद इसे टाल दिया गया. 29 मार्च को रवाना जीसैट-6ए से सिग्नल लॉस की वजह इलेक्ट्रिकल सर्किट में गड़बड़ी है.
ऐसी आशंका थी कि जीसैट-11 में यही दिक़्क़त सामने आ सकती है, इसलिए इसकी लॉन्चिंग को रोक दिया गया था. इसके बाद कई टेस्ट किए गए और पाया गया कि सारे सिस्टम ठीक हैं.
अंतरिक्ष में भारतीयों को भेजने की ओर अहम क़दम
अपने दम पर अंतरिक्ष में जाने की बात ही कुछ और है: राकेश शर्मा
बागला ने बताया, ''पांच दिसंबर को भारतीय समयानुसार दो बजकर आठ मिनट पर इसे भेजा जाएगा.''
ख़ास बात ये है कि इसरो का भारी वज़न उठाने वाला रॉकेट जीएसएलवी-3 चार टन वज़न उठा सकता है. चार टन से ज़्यादा वज़न वाले इसरो के पेलोड फ़्रेंच गयाना में यूरोपियन स्पेसपोर्ट से भेजे जाते हैं.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के मुताबिक़ जीसैट-11 का वज़न 5,854 किलोग्राम है और ये उसका बनाया अब तक का सबसे भारी सैटेलाइट है.
ये जियोस्टेशनरी सैटेलाइट पृथ्वी की सतह से 36 हज़ार किलोमीटर ऊपर ऑरबिट में रहेगा. सैटेलाइट इतना बड़ा है कि इसका हर सोलर पैनल चार मीटर से ज़्यादा लंबा है, जो एक सेडान कार के बराबर है.
जीसैट-11 में केयू-बैंड और केए-बैंड फ़्रीक्वेंसी में 40 ट्रांसपोंडर होंगे, जो 14 गीगाबाइट/सेकेंड तक की डेटा ट्रांसफ़र स्पीड के साथ हाई बैंडविथ कनेक्टिविटी दे सकते हैं.
लेकिन भारी सैटेलाइट का मतलब क्या है? उन्होंने कहा, ''भारी सैटेलाइट का मतलब ये नहीं है कि वो कम काम करेगा. कम्युनिकेशन सैटेलाइट के मामले में भारी होने का मतलब है कि वो बहुत ताक़तवर है और लंबे समय तक काम करने की क्षमता रखता है.''
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बागला के मुताबिक़ अब तक बने सभी सैटेलाइट में ये सबसे ज़्यादा बैंडविथ साथ ले जाना वाला उपग्रह भी होगा.
और इससे पूरे भारत में इंटरनेट की सुविधा मिल सकेगी. ये भी ख़ास बात है कि इसे पहले दक्षिण अमरीका भेज दिया गया था लेकिन टेस्टिंग के लिए दोबारा बुलाया गया.
पहले जीसैट-11 को इसी साल मार्च-अप्रैल में भेजा जाना था लेकिन जीसैट-6ए मिशन के नाकाम होने के बाद इसे टाल दिया गया. 29 मार्च को रवाना जीसैट-6ए से सिग्नल लॉस की वजह इलेक्ट्रिकल सर्किट में गड़बड़ी है.
ऐसी आशंका थी कि जीसैट-11 में यही दिक़्क़त सामने आ सकती है, इसलिए इसकी लॉन्चिंग को रोक दिया गया था. इसके बाद कई टेस्ट किए गए और पाया गया कि सारे सिस्टम ठीक हैं.
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बागला ने बताया, ''पांच दिसंबर को भारतीय समयानुसार दो बजकर आठ मिनट पर इसे भेजा जाएगा.''
ख़ास बात ये है कि इसरो का भारी वज़न उठाने वाला रॉकेट जीएसएलवी-3 चार टन वज़न उठा सकता है. चार टन से ज़्यादा वज़न वाले इसरो के पेलोड फ़्रेंच गयाना में यूरोपियन स्पेसपोर्ट से भेजे जाते हैं.
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